Announcement

Collapse
No announcement yet.

विमान हादसों के चुभते सवाल

Collapse
X
 
  • Filter
  • Time
  • Show
Clear All
new posts

  • विमान हादसों के चुभते सवाल

    महज पांच साल का वक्त और 35 से ज्यादा विमान हादसे। वायुसेना में विमान दुर्घटनाओं का रिकार्ड जान और माल की हिफाजत के इंतजामों पर गंभीर सवालिया निशान लगाता है। वहीं, नए विमानों के साथ हो रही दुर्घटनाएं वायुसेना के प्रबंधन पर कई गहरे सवाल खड़े करता है। यहां सवाल जनता के पैसे से खरीदे गए संसाधनों की बर्बादी का ही नहीं बल्कि इन हादसों की बलि चढ़े वायुसैनिकों की कीमती जान का भी है।

    वायुसेना हादसों की जांच का रिकार्ड बताता है कि बीते कुछ सालों में हुई 40 फीसद दुर्घटनाओं में गलती मशीन की नहीं बल्कि मानवीय थी। रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति ने अप्रैल 2013 में पेश रिपोर्ट में इस बात पर गहरी चिंता जताते हुए सरकार से प्रशिक्षण संबंधी व्यवस्थाओं पर फौरन ध्यान देने को कहा था। वायुसेना में अधिकारियों और एयरमैन की कमी का रिकार्ड भी चिंता का सबब बढ़ाता है। संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार 2011 में 565 अधिकारियों की कमी थी वहीं 2012 में आंकड़ा बढ़कर 961 हो गया। मौजूदा समय में एयरमैन पद पर छह हजार से अधिक पद खाली हैं।

    इस बीच, ताजा विमान हादसे बूढ़े मिग विमानों की उम्र को लेकर उठने वाली घिसे पिटी दलीलों को दरकिनार कर नए सवालों को गहराते हैं। वायुसेना के पिछले पांच हादसे उन विमानों व हेलीकॉप्टरों के साथ हुए हैं, जो अपेक्षाकृत नए थे। जून व नवंबर 2013 में दुर्घटनाग्रस्त हुआ मिग-29 विमान रूस से आधुनिकीकरण के बाद लौटे बेड़े का हिस्सा था। वहीं जून 2013 में राहत व बचाव अभियान के दौरान गिरा एमआइ-17वी5 हेलीकाप्टर भी अपेक्षाकृत नया था। इसके अलावा जो सी-130जे विमान ग्वालियर के करीब गिरा उसे तो भारतीय वायुसेना में आए महज तीन साल ही हुए थे। महत्वपूर्ण है कि इससे पहले वायुसेना में हादसों के लिए रूस से हासिल पुराने और बूढ़े विमानों की दुहाई दी जाती थी। लेकिन नए विमानों के साथ हो रहे हादसे संकेत करते हैं कि बीमारी की जड़ साजो-सामान के साथ ही नहीं है।
Working...
X